2024 आम चुनाव :- भारत के आगामी 2024 आम चुनाव भारतीय राजनीति में भूचाल मचा कर रख दिया है । अभी से ही जहाँ विपक्ष ओबीसी के मदद से सत्ता पक्ष को घेरना चाहती है , वहीं दूसरी तरफ सत्ता पक्ष फिर ताकत में आने के लिए अलग – अलग हथकंठे अपना रही है । आज के इस लेख में हम यह देखेंगे कि किस तरह ओबीसी 2024 के आम चुनाव में पार्टियों के लिए एक नई डिप्लोमेटिक कार्ड बनेगी बन चुकी है ।
ओबीसी का भारतीय आम चुनाव में इतिहास
भारतीय आम चुनाव में ओबीसी का आगमन 1979 में मंडल कमीशन के स्थापना से हो गया था । तब से , भारतीय आम चुनाव में ओबीसी कभी एक गर्म विषय के रूप में दिखाई पड़ता है , वहीं कभी यह ठंडे बस्ते में चला जाता है । पर जिस तरह से ओबीसी इस आम चुनाव में अपनी रफ्तार में दिखी है ऐसा लगता है कि इस बार का चुनाव इसी ओबीसी को एक ‘ ट्रम्प कार्ड’ के रूप में खेला जाएगा । यह ट्रम्प कार्ड ही शायद 2024 आम चुनाव में पार्टियों का रास्ता तय करेगी ।
भारत में ओबीसी एक वोट बैंक के रूप में
भारत में सांस्कृतिक विविधता मिलती है और साथ ही साथ भारत में जाति विविधता भी देखी जाती है । इसी जाति विविधता के कारण भारत के हर आम चुनाव में जाति चुनावी प्रचार में गर्माहट पैदा करती है । इसी प्रकार 2024 आम चुनाव में ओबीसी इसी चुनावी गर्माहट का नतीजा है । भारत में ओबीसी एक विस्तृत जाति है ।
अगर ओबीसी के विस्तृत जनसंख्या के बारे में बात किया जाएँ तो ओबीसी पूरे भारत में फैली हुई है और अगर राजनीति के विषय में बात किया जाएँ तो ओबीसी भारत की राजनीति को तय कर रही है । खासतौर पर बिहार और यूपी के यादव ओबीसी के रूप में भारत के राजनीति में प्रसिद्ध हैं और इन्हीं बिहार के यादव ही 2024 के आम चुनाव में राजनीतिक पार्टी का रास्ता तय कर सकती है ।
भारतीय राजनीति में ओबीसी ही क्यों
लंबे समय की बहस एवं लड़ाई के बाद मंडल कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकृत करने के बाद पश्चात ओबीसी को 27 प्रतिशत का आरक्षण मिला और इसी के साथ भारतीय राजनीति में ओबीसी का प्रवेश हुआ । इसी प्रवेश के साथ ओबीसी भारतीय राजनीति की दिशा और दशा तय करने लगी । भारत में जातिय जनगणना कराने की आवश्यकता है और ऐसा अनुमानित है कि ओबीसी का जातिय प्रतिशत अधिकतम होगी । इसी कारण से अभी से ओबीसी को लुभाने की कोशिश की जा रही है । इसी कारण सभी पार्टियां भारतीय राजनीति में ओबीसी को ज्यादा प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं ।
भारत में ओबीसी
जातीय जनसंख्या का अनुमान लगाया जाएँ तो भारत में ओबीसी जाति सबसे ज्यादा है । 1970 के दशक में कर्नाटक में गठित एक आयोग ने इदिगास , कुरुबा और अगासा समुदायों के लिए आरक्षण को काफी हद तक बढ़ा दिया गया जो वहाँ के वोट बैंक थे । इसी प्रकार हिन्दी बेल्ट वाले राज्यों में बनिया , कुर्मी , कोइरी और यादव उम्मीदवारों को सामने लाया गया । इसी कारण भारतीय राजनीति में खासकर हिन्दी बेल्ट के प्रदेश में ओबीसी नेताओं का आगमन दिखाई दिया । इसी का नतीजा है कि हम मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव को भारतीय राजनीति में देखते हैं ।
ओबीसी महिलाओं का आरक्षण
भारत में हाल में ही महिलाओं के लिए संसद में आरक्षण के लिए बिल पेश किया गया, जो एक नए भारत के लिए क्रांतिकारी कदम था । इसी कदम के बाद से ओबीसी ट्रम्प कार्ड के रूप में भारतीय राजनीति में नजर आने लगी है । विपक्ष का कहना है कि इस महिला आरक्षण बिल में भी ओबीसी महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए । इस विषय पर भी विपक्ष सत्ता पक्ष को 2024 आम चुनाव में घेरना चाहती हैं । अब यह देखना होगा कि 2024 आम चुनाव में विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरने में कितना कामयाब होती है ।
ओबीसी वोट बैंक के लिए विपक्ष का दाँव
विपक्षी गठबंधन ‘ इंडिया ‘ ने वर्तमान की सरकार को 2024 आम चुनाव में घेरने के लिए अभी से ही तैयारी कर रही है । इसका उदाहरण हम बिहार में नितिश सरकार द्वारा जातिय जनगणना कराना जिसमें यह देखा गया है कि ओबीसी बहुमत में है । इस जनगणना के द्वारा विपक्ष ओबीसी को यह दिखाना चाहती है कि वे लोग ही ओबीसी के शुभचिंतक है और इसी के द्वारा विपक्ष सत्ता पक्ष को अगले चुनाव में घेरने का मन बना रही है ।
ओबीसी वोट बैंक के लिए सत्ता का दाँव
ओबीसी वोट बैंक को लुभाने के लिए सत्ता पक्ष भी पीछे नहीं है । उन्होंने भी तरह – तरह के तरीके अपनाने की कोशिश की है , जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण है – विश्वकर्मा योजना | इस योजना के द्वारा सत्ता पक्ष की सरकार ओबीसी जनता को यह सरकार दिलासा दिलाना चाहती है कि सरकार इस जाति से के साथ हर तरह से सहयोग करेगी खासतौर पर आर्थिक रूप में । अब यह देखना बहुत ही रोचक होगा कि सत्ता पक्ष किस प्रकार अपने ओबीसी के ट्रम्प कार्ड को खेल कर सत्ता में बनी रहती है।
2024 आम चुनाव जीतने के लिए सत्ता पक्ष के अन्य दाँव
बीजेपी के लिए अग्रिम चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण रहने वाली है क्योंकि यह चुनाव जीतने से वो तीसरी बार केन्द्र में अपनी सत्ता बनाएँ रखेगी । इसकी तैयारी अभी से ही की जा रही है । जहाँ एक ओर बीजेपी राम मंदिर एवं सनातन धर्म के मुद्दे को बड़े मंचों में दृढ़ निश्चय के साथ जनता के सामने पेश कर रही है, वहीं दूसरी ओर यही पार्टी अपने अलग- अलग योजनाएं से लोगों को लुभाना चाहती है । अब आगे आने वाले दिनों में यह देखना बहुत ही रोचक होगा कि बीजेपी कितने हद अपने केन्द्र के पद को बचाने में कामयाब होती है और किस तरह वो जनता को लुभा पाती है ।
2024 आम चुनाव जीतने के विपक्ष के अन्य दाँव
एक ओर जैसे सत्ता पक्ष अत्यंत मजबूत दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर विपक्ष अत्यंत कमजोर और बिखरा हुआ मालूम पड़ता है । इ इसी को एक रस्सी में बाँधने के लिए विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बनाया जिसका नाम इंडिया रखा गया । इसी गठबंधन के एक पार्टी के द्वारा बिहार में जातिय जनगणना कराया गया और इसे ही अग्रिम चुनाव का मुद्दा बनाया जा रहा है । विपक्ष के पास सत्ता पक्ष को घेरने के लिए कोई खास बातें तो नहीं है इसलिए ऐसा लगता है कि उन्होंने ओबीसी को ही मुद्दा बना लिया है ।
निष्कर्ष
2024 आम चुनाव की तैयारी और इसकी गेहमा गहमी अभी से ही देखने को मिल रही है । अब यह देखना अत्यंत रोचक होगा कि सत्ता पक्ष या विपक्ष ओबीसी के ट्रम्प कार्ड को अच्छे से खेल करके सत्ता को लेती है एवं 2024 आम चुनाव का निर्णय आने वाले कई दशकों तक भारत के चुनावी रणनीति को तय करेगा तो यह बोलना गलत नहीं होगा कि 2024 – आम चुनाव मोदी , विपक्ष और ओबीसी के रूप में देखा जा सकता है ।
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